जगन्नाथ का महत्व और कहानी
भगवान जगन्नाथ को हिन्दू धर्म के अनुसार श्री कृष्ण का रूप माना जाता है । ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है, जो अन्य तीन धामों- बद्रीनाथ, द्वारका, और रामेश्वरम के साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है।
भगवान जगन्नाथ की कहानी रहस्यमय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण की मृत्यु के बाद उनके अवशेषों को समुद्र में विसर्जित किया गया था। एक दिन राजा इंद्रद्युम्न को एक सपना आया जिसमें उन्हें भगवान विष्णु ने एक लकड़ी की मूर्ति बनाने का निर्देश दिया। उन्होंने समुद्र तट पर एक दिव्य लकड़ी का टुकड़ा पाया और उससे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण किया। यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने स्वयं मूर्तियों का निर्माण किया और राजा को इन्हें पुरी में स्थापित करने का आदेश दिया। तब से, पुरी का जगन्नाथ मंदिर और रथ यात्रा धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।
रथ यात्रा क्या है?
रथ यात्रा एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो हर साल पुरी में मनाया जाता है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा तीन विशाल रथों में बैठकर गुंडीचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (आषाढ़ मास के दूसरे दिन) से प्रारंभ होती है और आठ दिनों तक चलती है।
रथ यात्रा की पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ अपनी मौसी के घर (गुंडीचा मंदिर) जाते हैं। यह यात्रा भगवान के भक्तों को उनके दिव्य दर्शन का अवसर प्रदान करती है। एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण अपनी माता यशोदा और गोपियों को देखने के लिए वृंदावन की यात्रा पर जाते हैं, और यही भावना इस यात्रा में प्रकट होती है।
रथ यात्रा का महत्व
रथ यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत बड़ा है। इसे ‘चलती प्रतिमा’ का त्योहार भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए मंदिर से बाहर आते हैं। इस यात्रा में भाग लेने से भक्तों को भगवान का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं और इसे देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
रथ यात्रा की तैयारी कई हफ्ते पहले शुरू हो जाती है। तीनों रथों का निर्माण विशेष रूप से होता है, जिनमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा को बैठाया जाता है। रथ यात्रा के दिन, भक्त रथों को खींचते हैं और गुंडीचा मंदिर तक ले जाते हैं। यह यात्रा हर्षोल्लास और भक्ति से भरी होती है। रास्ते में, भक्त गाते, नाचते और भगवान के जयकारे लगाते हैं। गुंडीचा मंदिर में पहुंचने के बाद, भगवान आठ दिन तक वहां विश्राम करते हैं और फिर रथ यात्रा के अंत में अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं, जिसे ‘बहुदा यात्रा’ कहते हैं।
इस वर्ष ओडिशा, पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा 6 जुलाई 2024 को आयोजित की जाएगी। पुरी का रथ यात्रा उत्सव एक प्रमुख सांस्कृतिक आयोजन है, जिसमें लाखों भक्त भाग लेते हैं। इस त्योहार के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा के विशाल रथों को खींचने के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें विभिन्न नृत्य, संगीत, और पारंपरिक रीति-रिवाजों का प्रदर्शन होता है।