दान – दक्षिणा श्रेष्ठ पुण्यकर्म

Daan

आचरण (10 ) दक्षिणा – दान ( दान का अर्थ होता है देना )

    ”  ज्ञान  गुरु से लीजिये शीश का कीजिये दान
       बहुतक भोंदू  बहिगये रखी जीव अभिमान “

संत कबीरजी के इस दोहा का मतलब है गुरु के ज्ञान केलिए अपना सर भी दान कर दीजिए । मतलब दान दक्षिणा का महत्व तो वेद पुराणों ने भी गाया है।

(कई लोग पूछते हे की धर्म  कार्य करने केलिए ब्राह्मण , साधक , तांत्रिक, उपासक पैसे मांग रहे , क्या करे ? चलो आज इस विषय को थोड़ा विस्तृत समझे)

धर्म क्षेत्र का एक अचूक नियम सूत्र- 

“संकल्प बगैर सिद्धि नही ओर संशय वहां फल नही”
 मतलब ईश्वर के किसी भी स्वरूप की उपासना करो तो हमे क्या चाहिए वो संकल्प निश्चित होना चाहिए। वरना मंत्रफल तो संचित होगा पर आपका कोई संकल्प ही नही तो फल कैसे मिलेगा ?

इसी तरह मंत्र जाप के पहले आसन,प्राणायाम,पूजन,स्तोत्र गान ,ध्यान,विनियोग ,न्यास ये सब भी जरूरी है मंत्र शक्ति से एकत्र ऊर्जा का लाभ लेने केलिए। जिस ऋषिने ये मंत्र निर्माण किया है उनमें मंत्र के देवता ,छंद ,बीज,शक्ति बिगैरे समज दी होती है।विनियोग में जब मंत्रद्रष्टा ऋषि को मस्तिष्क पर स्थापित किये जाते है तब उनकी प्रचंड शक्ति प्रवाह के साथ हम जुड़ जाते है और इस पावर से हमे मंत्र फल मिलता है बाकी पुस्तकोसे पढ़कर कोई करने लगे और वो सफल हो ऐसा कभी नही देखा। इस बात को इस दृष्टांत से समझे :-

कोई व्यक्ति समाज देश की सेवा के लिए कोई पद लेना चाहें तो उनको बहोत लोगो के सपोर्ट की जरूरत पड़ती है। लोगो के लिए अच्छे अच्छे कार्य करने लगे और लोक चाहना से अगर स्वतंत्र चुनाव लड़े ओर जीत भी जाये तो भी वो प्रधान मंत्री नही बन सकता।

इसकेलिए ओर 200-300 सांसद का सपोर्ट चाहिए। वो उन्हें तब मिल सकता है जब वो किसी पक्षमे जुड़ जाय  ऐसे ही सद्गुरु ओर गुरूमण्डल की प्रचंड ऊर्जा प्रवाहमय होने से सफल हुवा जाता है। किसी पुस्तक या सुनी सुनाई विधि विधान या मंत्र से सब मिलने लगता तो दुनियामे कोई समस्या ही नही होती।

जो ब्राह्मण, साधक,साधु,तांत्रिक,उपासक आपको कोई भी विधि विधान मंत्र देते है तब उनकी शक्ति से ही सफलता मिलती है। मंत्र के द्रष्टा ऋषि द्वारा ही उतरोतर दीक्षा क्रम में उन्हें ये मंत्रदीक्षा मिली होती है और विनियोग न्यास द्वारा प्रथम उनका स्मरण करके उनके प्रवाह में जुड़ने से ही फल मिलता है । तो सवाल ये उठता है कि वो बिना किसी मतलब ये सब क्यों करे ? वो कोई उनकी फर्ज का भाग नही है। आप उनकेलिए कुछ कीजिये ,उनकी प्रसन्नता प्राप्त कीजिये,उनकी सेवा कीजिये तो उनके रदयमे आप केलिए दया होगी और उनके रदय के आशीर्वाद से आपको सफलता मिल सकती है। इसलिए कभी भी कोई मंत्र , विधान , पूजा मुफ्त मत करवाये । दक्षिणा अवश्य देना चाहिए ।

दक्षिणा आजादी के बाद लोकशाही व्यवस्थामे आर्थिक पछात लोगो ओर आम जनता के लिए भी सरकार द्वारा अनेक सेवा निशुल्क या सरकारी मदद से चलाई गई और आज सबको हर  चीज मुफ्त की लेने की आदत बन गई है।

ब्राह्मण ,उपासक,तांत्रिक को दक्षिणा अवश्य ही देनी चाहिए। मुफ्त लेने की लालच कोई फल नही देती।ओर किसी को धन दक्षिणा देना वो तो वैदिक परंपरा का हिस्सा है। हम किसी की शादि मे जाते है तो शगुन स्वरूप यथा शक्ति धन भेट करते है ,किसी रिश्तेदार के घर जाते है तो बच्चे या बहुओं के हाथमे धन देते है वो सौजनयशीलता है उनसे सामनेवाले का मन प्रफुल्लित होता है। देव मन्दिर मे भी हम खाली हाथ नही जाते ,देव को हमारे धन की कोई जरूरत नही होती पर उनकी प्रसन्नता केलिए हम कुछ न कुछ वहां रखते है।

तो फिर आपकी समस्या के निवारण के लिए कोई तांत्रिक या ब्राह्मण आपको कोई विधान मंत्र कुछ भी दे या पूजन करे वो मुफ्त क्यु ? फिरसे तर्क वितर्क वाद विवाद करनेवाले दलीले करने लगते है ,ये सही ये गलत ओर ऐसे ही व्यर्थ वाद विवादमे जिंदगी पूरी हो जाती है। हमारा कहने का मतलब है दान दक्षिणा पुण्य कार्य तो बिना मांगे भी हमे सामने जाकर करना चाहिए। जैसे कर्म ऐसे फल ये तो भागवत गीता का संदेश है ।

परम कृपालु परमात्मा सदाशिव आप सभी का कल्याण करे यही प्रार्थना सह अस्तु .. श्री मात्रेय नमः

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